Tuesday 3 March 2015

Hori of Banaras Gharana: खेले मशाने में होरी दिगंबर..

Hori is one of the many forms belonging to the light classical music traditions of Hindustani music is sung on Holi capturing its joyous and playful spirit. In Banaras and Awadh, Holi celebrations would begin on Basant Panchami and continue till Baisakh. For one whole month, people gather and sing Dhamar, set to Deepchandi tala, Ulhara, Faag and many more. “Holi khele raghubira Awadh mein” from the film “Baghban” and the hugely popular “Rang barse” are ulharas which have their roots in Awadh. In the film “Kati Patang”, the Holi song “Aaj na choddenge bas humjoli” has shades of Dhamar. This form begins with a slow tempo but as it progresses it becomes extremely fast. “Holi aayi re kanhai” from “Mother India” is a hori but interestingly has a kajri tune.

Holi at Kashi Viswanath temple (Varanasi) : 1st March 2015 (Rangabhari Ekardashi)

 खेले मशाने में होरी दिगंबर.. खेले मशाने में होरी.. भूत पिशाच बटोरी दिगंबर.. भूत नाथ के मंगल होरी


मान्यताओं के अनुरूप काशी में माता पार्वती के प्रथम आगमन पर यह लिखा गया था। रविवार शाम को भगवान शंकर काशी के नाथ काशीविश्वनाथ की चल प्रतिमा को देखकर तब इन लाइनों का मर्म दिखा, जब हर कोई बाबा विश्वनाथ को रंग लगाने को आतुर था। 

इसी के साथ ही आज से भोले की नगरी में 6 दिवसीय होली उत्सव की शुरूआत हो गई है। रविवार को काशी विश्वनाथ परिसर में भक्तों ने रंग भरी एकादशी के मौके पर बाबा विश्वनाथ संग होली खेली।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पंडित श्रीकांत महाराज ने बताया, “फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और काशी में होली का पर्वकाल प्रारंभ हो जाता है। 
 पौराणिक परम्पराओं और मान्यताओं के मुताबिक रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के उपरान्त पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आये थे। इस अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमायें काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाद्ययंत्रो की ध्वनि के साथ अपनी जनता, भक्त और श्रद्धालुओं का हाल-चाल पूछने एवं आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते हैं।
यह पर्व काशी में मां पार्वती के प्रथम स्वागत का भी सूचक है। इस अवसर पर समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाकर खुशियां मनायी जाती हैं।”
बाबा विश्वनाथ की इस अदभुत छटा को देखने के लिए विश्वनाथ मंदिर स्थित रेड ज़ोन में लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। भक्तों ने बाबा संग जमकर अबीर गुलाल खेला। इस मौके पर तिलभांडेश्वर मंदिर संघ ने डमरू बजाकर समां ही बांध दिया। ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वर्ग से भगवान शंकर का श्रृंगार करने के लिए आतुर है। पूरा मंदिर परिसर हर हर महादेव के नारे से गूंज रहा था।


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